|| Tar ho tar prabhu mujh sevak Mahavir swami - JAIN STAVAN SONG ||
To download this song click HERE.
तार हो तार प्रभु मुज सेवक स्तवन सांग
जैन स्तवन
श्री वीर भगवान् स्तवन Devchandraji jain stavan |
Tar ho tar sevak jain song mahavir swami devchandraji |
Please visit this channel for more stavans like this.
|| तार हो तार प्रभु मुज सेवक ||
तार हो तार प्रभु मुज सेवक भणी, जगतमां एटलुं सुजश लीजे;
दास अवगुण भर्यो जाणी पोता तणो, दयानिधि दीन पर दया कीजे ।।1।।
राग द्वेषे भर्यो मोह वैरी नड्यो, लोकनी रीतमां घणुंए रातो;
क्रोध वश धमधम्यो शुद्ध गुण नवि रम्यो, भम्यो भव मांहे हुं विषय मातो ।।2।।
आदर्युं आचरण लोक उपचारथी, शास्त्र अभ्यास पण कांई कीधो;
शुद्ध श्रद्धा न वली आत्म अवलंब विण, तेहवो कार्य तिणे कोन सीधो ।।3।।
स्वामी दरिसण समो निमित्त लही निरमलो, जो उपादान ए शुचि न थाशे;
दोष को वस्तुनो अहवा उद्यम तणो, स्वामी सेवा सही निकट लाशे ।।4।।
स्वामी गुण ओळखी स्वामीने जे भजे, दरिशण शुद्धता तेह पामे;
ज्ञान चारित्र तप वीर्य उल्लासथी, कर्म जीती वसे मुक्ति धामे ।।5।।
जगत वत्सल महावीर जिनवर सुणी, चित्त प्रभुचरणने शरण वास्यो;
तार जो बापजी बिरुद निज राखवा, दासनी सेवना रखे जोशो ।।6।।
विनती मानजो शक्ति ए आपजो, भाव स्याद्वादता शुद्ध भासे;
साधी साधक दशा सिद्धता अनुभवी, देवचंद्र विमल प्रभुता प्रकाशे. ।।7।।
Below explanation is taken from https://swanubhuti.me/
Please visit the site for more such stavans
अर्थ 1 : संसार के दुःख से उद्विग्न बना हुआ मुमुक्षु आत्मा श्री महावीर परमात्मा से अफनी दीन-दुःखी अवस्था का वर्णन करता हुआ प्रार्थना करता है, हे दीनदयाल ! करुणा सागर ! प्रभो ! आप इस दीन-दुःखी दास पर दया वरसाकर उसे संसार-सागर से तारो-पार उतारो। यद्यपि, यह सेवक अनेक अवगुणों-दोषों से भरा हुआ है, राग-द्वैषदि से रंगा हुआ है तो भी इसे आप अपना सेवक-शरणागत मानकर इस पर कृषादृष्टि करो और इसे संसार-सागर से पार उतारकर जगत् में महान् सुयश-कीर्ति को प्राप्त करो । यही मेरी भावभरी विनम्र प्रार्थना है।
तार हो तार प्रभु मुज सेवक भणी, जगतमां एटलुं सुजश लीजे;
दास अवगुण भर्यो जाणी पोता तणो, दयानिधि दीन पर दया कीजे ।।1।।
अर्थ 2 : हे प्रभो ! आपका यह सेवक राग-द्वेष से भरा हुआ है, मोहशत्रु से दबा हुआ है, लोक-प्रवाह में रंगा हुआ है अर्थात् सदा लोकरंजन में कुशल है, क्रोध के वशीभूत होकर धमधमा रहा है, शुद्ध ज्ञान-दर्शन-चारित्र या क्षमादि गुणों में तन्मय नहीं बन रहा है, परन्तु विषयों में आसक्त बनकर भवभ्रमण कर रहा है।
राग द्वेषे भर्यो मोह वैरी नड्यो, लोकनी रीतमां घणुंए रातो;
क्रोध वश धमधम्यो शुद्ध गुण नवि रम्यो, भम्यो भव मांहे हुं विषय मातो ।।2।।
अर्थ 3 : भवभ्रमण करते-करते कभी मानवभव में आवश्यकादि द्रव्य क्रियाएँ लोकोपचार से की होगी अर्थात् विष, गरम और अन्योन्यानुष्ठानवाली क्रियाएँ की होगी तथा ज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से शास्त्रों का कुछ अभ्यास भी किया होगा। परन्तु शुद्ध सत्तागत आत्मधर्म की शुद्धरूचि (श्रद्धान) बिना और आत्मगुण के आलम्बन बिना केवल बाह्यक्रिया द्वारा या स्पर्श अनुभवज्ञान बिना के शास्त्राभ्यास द्वारा सम्यग्दर्शन की प्राप्ति रूप कोई कार्य सिद्ध नहीं हुआ।
आदर्युं आचरण लोक उपचारथी, शास्त्र अभ्यास पण कांई कीधो;
शुद्ध श्रद्धा न वली आत्म अवलंब विण, तेहवो कार्य तिणे कोन सीधो ।।3।।
अर्थ 4 : वीतराग परमात्मा के दर्शन (शासन) जैसा निर्मल पुष्ट-निमित्त प्राप्त करके भी यदि मेरी आत्मसत्ता पवित्र-शुद्ध न हो तो यह वस्तु-आत्मा का ही कोई दोष है अथवा मेरा जीवदल तो योग्य है किन्तु मेरे अपने पुरुषार्थ की ही कमी है? परन्तु अब तो स्वामीनाथ की सेवा ही मुझे प्रभु के पास ले जायेगी और मेरे एवं उनके बीच के अन्तर को तोड़ देगी।
स्वामी दरिसण समो निमित्त लही निरमलो, जो उपादान ए शुचि न थाशे;
दोष को वस्तुनो अहवा उद्यम तणो, स्वामी सेवा सही निकट लाशे ।।4।।
अर्थ 5 : जो आत्मा अरिहन्त परमात्मा के गुणों को पहचान कर उनकी सेवा करता है, वह आत्मा शुद्ध सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है और ज्ञान (यथार्थ-अवबोध), चारित्र (स्वरूप-रमणता), तप (तत्त्व एकाग्रता) वीर्य (आत्मशक्ति) गुण के उल्लास द्वारा क्रमशः सब कर्मों को जीतकर मोक्ष (मुक्ति) मन्दिर में जा बसता है।
स्वामी गुण ओळखी स्वामीने जे भजे, दरिशण शुद्धता तेह पामे;
ज्ञान चारित्र तप वीर्य उल्लासथी, कर्म जीती वसे मुक्ति धामे ।।5।।
अर्थ 6 : महावीर परमात्मा तीनों जगत् के हितकर्ता हैं । ऐसा सुनकर मेरे चित्त ने आपके चरणों की शरण स्वीकार की है। अतः हे जगतात ! हे रक्षक ! हे प्रभो ! आप अपनी तारकता के विरुद्ध को सार्थक करने के लिए भी मुझे इस संसार-सागर से तारियेगा। परन्तु, दास की सेवा-भक्ति की तरफ ध्यान मत दिजियेगा अर्थात् यह सेवक तो मेरी सेवा-भक्ति ठीक से नहीं करता, ऐसा जानकर मेरी उपेक्षा मत करियेगा। मेरी सेवा की तरफ देखे बिना केवल आपके ‘तारक’ विरुद को सार्थक करने के लिए मुझे तारियेगा-पार उतारिएगा।
जगत वत्सल महावीर जिनवर सुणी, चित्त प्रभुचरणने शरण वास्यो;
तार जो बापजी बिरुद निज राखवा, दासनी सेवना रखे जोशो ।।6।।
अर्थ 7 : हे कृपालु देवे ! मेरी एक छोटी-सी विनती को आप अवश्य स्वीकार करें और मुझे ऐसी शक्ति दें कि जिससे मैं वस्तु के सब धर्मों को तनिक भी शंकादि दूषण रखे बिना यथार्थरूप से जान सकूँ और साधक-दशा को सिद्ध कर सिद्ध-अवस्था का अनुभव कर सूकँ तथा देवों में चन्द्र समान उज्वल प्रभुता को प्रकटित कर सूकँ। स्याद्वाद के ज्ञान से साधकता प्रकटित होती है और साधकता से सिद्धता प्राप्त होती है।
विनती मानजो शक्ति ए आपजो, भाव स्याद्वादता शुद्ध भासे;
साधी साधक दशा सिद्धता अनुभवी, देवचंद्र विमल प्रभुता प्रकाशे. ।।7।।
If you are interested in knowing the meanings of the 24 stavans
then below pdfs have more insights and page number of all the
stavans are as per below
IF YOU ARE INTERESTED IN LIST OF ALL THE SONGS TO DOWNLOAD JUST CLICK THE BELOW
HIGHLIGHTED BUTTON TO DOWNLOAD FROM GOOGLE DRIVE
to download itHIGHLIGHTED BUTTON TO DOWNLOAD FROM GOOGLE DRIVE
No comments:
Post a Comment