|| Shital jinpati Devchandraji Stavan LYRICS - JAIN STAVAN SONG ||
To download this song click HERE.
श्री शीतल जिनपति प्रभुता प्रभुनी जणायजी स्तवन सांग
जैन स्तवन
Munichand jinand Sri Shreyansh prabhu tano Devchandraji श्री श्रेयांसनाथ जिन स्तवन |
Shreyanshnath bhagwan |
Please visit this channel for more stavans like this.
|| श्री श्रेयांस प्रभु तणो मुनिचंद जिणंद अमंद ||
श्री श्रेयांस प्रभु तणो, अति अद्भुत सहजानंद रे;
गुण एकविध त्रिक परिणम्यो, एम अनंत गुणनो वृंद रे ज ।
मुनिचंद जिणंद अमंद दिणंद परे नित्य दीपतो सुखकंद रे ।।1।।
निज ज्ञाने करी ज्ञेयनो, ज्ञायक ज्ञाता पद ईश रे;
देखे निज दर्शन करी, निज दृश्य सामान्य जगीश रे ।।मुनिचंद 2।।
निज रम्ये रमण करो, प्रभु चारित्रे रमताराम रे;
भोग्य अनंतने भोगवो, भोगे तेणे भोक्ता स्वाम रे ।।मुनिचंद 3।।
देय दान नित दीजते, अति दाता प्रभु स्वयमेव रे;
पात्र तुमे निज शक्तिना, ग्राहक व्यापकमय देव रे ।।मुनिचंद 4।।
परिणामी कारज तणो, कर्ता गुण करणे नाथरे;
अक्रिय अक्षय स्थितिमयी, निकलंक अनंती आथरे ।।मुनिचंद 5।।
पारिणामिक सत्ता तणो, आविर्भाव विलास निवास रे;
सहज अकृत्रिम अपराश्रयी, निर्विकल्प ने नि:प्रयास रे।।मुनिचंद 6।।
प्रभु प्रभुता संभारतां, गातां करतां गुणग्राम रे;
सेवक साधनता वरे, निज संवर परिणति पाम रे ।।मुनिचंद 7।।
प्रगट तत्त्वता ध्यावतां, निज तत्त्वनो ध्याता थाय रे,
तत्त्वरमण एकाग्रता, पूरण तत्त्वे एह समाय रे ।।मुनिचंद 8।।
प्रभु दीठे मुज सांभरे, परमातम पूरणानंद रे,
देवचंद्र जिनराजना, नित्य वंदो पद अरविंद रे ।।मुनिचंद 9।।
Below explanation is taken from https://swanubhuti.me/
Please visit the site for more such stavans
अर्थ 1 : श्री श्रेयांसनाथ प्रभु का सहजानंद स्वरूप अत्यन्त आश्चर्यजनक है। प्रभु का एक-एक गुण तीन प्रकार से परिणत होता है। प्रभु ऐसे अनन्त गुण के भण्डार है। मुनियों में चन्द्र समान उज्जवल-दैदीप्यमान, सूर्य के समान नित्य दीप्तिमान और सुख के कन्द प्रभु सदा अपने स्व-गुणपर्याय परिणमनरूप कार्य व्यक्तरूप कार्य में-प्रकट रीति से कर रहे हैं।
श्री श्रेयांस प्रभु तणो, अति अद्भुत सहजानंद रे;
गुण एकविध त्रिक परिणम्यो, एम अनंत गुणनो वृंद रे ज ।
मुनिचंद जिणंद अमंद दिणंद परे नित्य दीपतो सुखकंद रे ।।1।।
अर्थ 2 : परमात्मा अपने केवलज्ञान गुण से सर्वज्ञेय पदार्थो के ज्ञायक हैं। अत एव ज्ञातापद के स्वामी हैं। केवलज्ञान कारण है और सर्व ज्ञेय को जानना कार्य है, केवलज्ञान की प्रवत्ति क्रिया है और उसके कर्त्ता परमात्मा हैं। दर्शन गुण की त्रिविध परिणति भी इसी तरह समझनी चाहिए। निज दर्शन (केवलदर्शन) गुण के द्वारा परमात्मा देखने योग्य स्वयं की सर्व सामान्य सम्पदा अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्वादि को देखते हैं। उपलक्षण से सर्व द्रव्यों में रहे हुए सामान्य को भी देखते हैं। आत्मा (कर्त्ता) दर्शनेन (करण) दृश्यभावनां (कार्य-साध्य) दर्शन-करोति (क्रिया)। जीव द्रव्य की गुण परिणति सिद्ध अवस्था में तीन रूप में परिणत होती है अर्थात् करण, कार्य और क्रियारूप में ज्ञानादि गुणों का परिणमन होता है । यहाँ उपादानरूप में प्रकट कारण यह ‘करण’ है। उस करण का साध्य (फल) वह कार्य है तथा करने की प्रवृत्ति यह क्रिया है। जैसे कि, केवलज्ञान गुण यह करण है और उससे सर्व ज्ञेय पदार्थो का बौध होना यह साध्य फलरूप ‘कार्य’ है और जानने के लिए जो वीर्य के सहकार से ज्ञान की स्फुरणा होती है वह प्रवृत्तिरूप ‘क्रिया’ है।
निज ज्ञाने करी ज्ञेयनो, ज्ञायक ज्ञाता पद ईश रे;
देखे निज दर्शन करी, निज दृश्य सामान्य जगीश रे ।।मुनिचंद 2।।
अर्थ 3 : चारित्र गुण के द्वारा निज (रम्य) शुद्धात्म-परिणति में निरन्तर रमणता करनेवाले होने से परमात्मा रमतेराम हैं। यहां चारित्रगुण ‘करण’ है, स्वात्मा में रमण ‘कार्य’ है। इसी तरह प्रभु भोग गुण के द्वारा भोग्यरूप आत्मस्वरूप-अनन्त ज्ञानादि गुण को भोगते हैं अतःभोक्ता हैं। (भोग्य गुण करण है, भोग्य कार्य है और भोगने की प्रवृत्ति क्रिया है।)
निज रम्ये रमण करो, प्रभु चारित्रे रमताराम रे;
भोग्य अनंतने भोगवो, भोगे तेणे भोक्ता स्वाम रे ।।मुनिचंद 3।।
अर्थ 4 : दान गुण के द्वारा आप सर्व गुणों का स्व-प्रवृत्ति में वीर्य का सहकाररूप दान सदा देते हैं, अतः हे प्रभो ! आप ही स्वयं देय, दान और दाता है। जिस गुण को सहकार मिला है उसे लाभ की प्राप्ति हुई है। इसी तरह हे देव ! आप निज आत्मशक्ति के पात्र-आधार हैं; उस आत्मशक्ति के ही आप ग्राहक हैं और उसमें व्यापक हैं।
देय दान नित दीजते, अति दाता प्रभु स्वयमेव रे;
पात्र तुमे निज शक्तिना, ग्राहक व्यापकमय देव रे ।।मुनिचंद 4।।
अर्थ 5 : हे नाथ ! आप अव्याबाध सुखादि गुणों (करण) द्वारा सुखानुभवादि (कार्य) करते हैं। अतः आप ही गुण-करण द्वारा परिणामो कार्य के कर्त्ता हैं, अन्य किसी द्रव्य में कर्तृत्व धर्म नहीं है। इसी तरह आप अक्रिय-गमनक्रियारहित, अक्षय स्थितिवाले, निष्कलंक-सर्व कर्मकलंकरहित और अनन्त ज्ञानादि सम्पत्ति के स्वामी हैं।
परिणामी कारज तणो, कर्ता गुण करणे नाथरे;
अक्रिय अक्षय स्थितिमयी, निकलंक अनंती आथरे ।।मुनिचंद 5।।
अर्थ 6 : परमात्मा अपनी पूर्णरूप से प्रकटित पारिणामिक सत्ता के अनुभव के भण्डार (घर) हैं। इसी तरह वे अपनी सहज, अकृत्रिम (स्वाभाविक), स्वतन्त्र, निर्विकल्प आत्मसत्ता का बिना किसी प्रयत्न के अनुभव करते हैं।
पारिणामिक सत्ता तणो, आविर्भाव विलास निवास रे;
सहज अकृत्रिम अपराश्रयी, निर्विकल्प ने नि:प्रयास रे।।मुनिचंद 6।।
अर्थ 7 : परमात्मा की अनन्त प्रभुता का स्मरण करने से तथा उच्च स्वर से उनके गुण समूह की स्तुति (गान) करने से भक्तसेवक निज संवर-परिणति स्वभाव रमणतारूप आत्मसाधना को प्राप्त करता है अर्थात् अनादि की विबावन परिणतता छोड़कर स्वभाव में मग्न बनता है।
प्रभु प्रभुता संभारतां, गातां करतां गुणग्राम रे;
सेवक साधनता वरे, निज संवर परिणति पाम रे ।।मुनिचंद 7।।
अर्थ 8 : प्रभु की प्रकट प्रभुता का श्रुत उपयोग द्वारा ध्यान करने से आत्मतत्त्व का भी ध्यान हो सकता है और जब ध्याता आत्मतत्त्व के ध्यान में तन्म्य बनता है तब क्रमशः निर्विकल्प-समाधि को पाकर पूर्ण शुद्ध स्वरूप को प्राप्त करता है।
प्रगट तत्त्वता ध्यावतां, निज तत्त्वनो ध्याता थाय रे,
तत्त्वरमण एकाग्रता, पूरण तत्त्वे एह समाय रे ।।मुनिचंद 8।।
अर्थ 9 : परमात्मा की प्रतिमा के दर्शन से उनमें रही हुई पूर्णानन्दमयी प्रभुता का ध्यान आता है अर्थात् चेतन परमगुणी का अनुयायी बनता है। यही आत्म-साधना का प्रधान अंग है। अतः है भव्यजनों ! तुम देवों में चन्द्र समान दैदीप्यमान जिनेश्वर भगवन्त के चरणकमलों में सदा नमस्कार करो और उन्हें ही त्राण, शरण, आधार एवं सर्वस्व मानकर उनकी सेवा में ही तन्मय-तल्लीन रहो। अरिहन्त की सेवा से अवश्य परम सुख की प्राप्ति होती है।
प्रभु दीठे मुज सांभरे, परमातम पूरणानंद रे,
देवचंद्र जिनराजना, नित्य वंदो पद अरविंद रे ।।मुनिचंद 9।।
If you are interested in knowing the meanings of the 24 stavans
then below pdfs have more insights and page number of all the
stavans are as per below
IF YOU ARE INTERESTED IN LIST OF ALL THE SONGS TO DOWNLOAD JUST CLICK THE BELOW
HIGHLIGHTED BUTTON TO DOWNLOAD FROM GOOGLE DRIVE
to download itHIGHLIGHTED BUTTON TO DOWNLOAD FROM GOOGLE DRIVE
No comments:
Post a Comment