|| ASARAN BHAVANA : अशरण भावना ||
ASHARAN BHAVANA JAIN DHARM RELIGION
|| अशरण भावना -Helpnessness||
Explanation of ASARAN BHAVANA in English and Hindi
यह जीवन जबतक है, तबतक ही है; इसका एक पल भी कोई बढ़ा नहीं सकता; जब मौत आ जायगी तो न तो रस-रसायन ही बचा पायेंगे और न सुत (पुत्र), न सुभट अथवा न सुभट-सुत। व्यवहार से कुछ भी कहो, पर सत्य बात तो यही है कि जीवन-मरण अशरण है, संसार में कोई भी शरण नहीं है।
ASARAN BHAVANA अशरण भावना
सुर असुर खगाधिप जेते, मृग ज्यों हरि काल दले ते।
जोबन गृह गो धन नारी, हय गय जन आज्ञाकारी ।
इन्द्रिय-भोग छिन थाई, सुरधनु चपला चपलाई ।।
काल-सिंह ने मृग- चेतन को घेरा भव वन में।
नहीं बचावन हारा कोई, यों समझो मन में॥
मंत्र तंत्र सेना धन संपति, राज पाट छूटे।
वश नहिं चलता काल लुटेरा,काय नगरि लूटे|| (6)
चक्ररत्न हलधर सा भाई, काम नहीं आया।
एक तीर के लगत कृष्ण की विनश गई काया॥
देव धर्म गुरु शरण जगत में, और नहीं कोई।
भ्रम से फिरै भटकता चेतन, यूँ ही उमर खोई|| (7)
सुर असुर खगाधिप जेते, मृग ज्यों हरि काल दले ते।
मणि मंत्र तंत्र बहु होई, मरते न बचावै कोई।।४।।
अर्थ - संसार में जो इन्द्र (सुरपति), नागेन्द्र (असुरपति), चक्रवर्ती (खगपति) आदि महिमावान हुए उन सबको भी मृत्यु (काल) उसी प्रकार विनष्ट कर देती है, जैसे हिरण को सिंह मार डालता है। संसार के भौतिक रत्न, मंत्र और तंत्र भी मृत्यु से नहीं बचा सकते। संसार में कोई भी शरण नहीं है और मरने से कोई बचाने वाला नहीं है-ऐसा चिन्तवन करना ही ‘अशरण भावना’ है।
अन्वयार्थ : – (सुर असुर खगाधिप) देवोंके इन्द्र,असुरोंके इन्द्र और खगेन्द्र [गरुड़, हंस ] (जेते) जो-जो हैं (ते)
उन सबका (मृग हरि ज्यों) जिसप्रकार हिरनको सिंह मार डालता है; उसीप्रकार (काल) मृत्यु (दले) नाश करता है । (मणि) चिन्तामणि आदि मणिरत्न, (मंत्र) बड़े-बड़े रक्षामंत्र; (तंत्र) तंत्र, (बहु होई) बहुतसे होने पर भी (मरते) मरनेवालेको (कोई) वे कोई (न बचावै) नहीं बचा सकते ।
विशेषार्थ - महावन में व्याघ्र से पकड़े हुए हिरण के बच्चे को एवं महासमुद्र में जहाज से छूटे हुए पक्षी को जैसे कोई शरण नहीं है, वैसे ही मरण आदि के समय इन्द्र, चक्रवर्ती, कोटिभट, सहस्रभट, पुत्र एवं स्त्री आदि चेतन पदार्थ तथा पर्वत, किला, भोंहरा, मणि, मंत्र, तंत्र, औषधि, आज्ञा एवं महल आदि अचेतन पदार्थ कोई भी शरण नहीं हैं, ऐसा चिन्तन करना अशरण भावना है।
हे आत्मन् ! विचार कर,जब काल रूपी बाज़ झपटता है,तो जीव रूपी कबूतर को दबोचकर ले जाता है। उस समय
ये भवन,धन,संपत्ति,परिवार,सैनिक,सेवक,वैद्ध आदि कोई भी रक्षा नहीं कर सकते।सभी असहाय देखते रह जाते हैं।देख मृत्यु रूपी
सिंह जीव रूपी हिरण को पकड़कर ले जा रहा है।
दोहा:--- दल बल देवी देवता,मात-पिता परिवार ।
मरती बिरिया जीव को,कोई न राखनहार ।।
अशरण भावना भाने से जीवन,धन एवं परिजन आदि की असारता का बोध होता है।
Pravachan on ASARAN Bhavna
इन्द्रिय-भोग छिन थाई, सुरधनु चपला चपलाई ।।
काल-सिंह ने मृग- चेतन को घेरा भव वन में।
नहीं बचावन हारा कोई, यों समझो मन में॥
मंत्र तंत्र सेना धन संपति, राज पाट छूटे।
वश नहिं चलता काल लुटेरा,काय नगरि लूटे|| (6)
चक्ररत्न हलधर सा भाई, काम नहीं आया।
एक तीर के लगत कृष्ण की विनश गई काया॥
देव धर्म गुरु शरण जगत में, और नहीं कोई।
भ्रम से फिरै भटकता चेतन, यूँ ही उमर खोई|| (7)
असुरक्षा का अहसास हमारे अंदर बचपन से है। अगर माँ चली गई तो बच्चा रोता है। यह स्वाभाविक है। मगर पचास-साठ वर्ष की उम्र के लोग भी बच्चों की तरह रोते हैं जब उनकी माँ चली जाती है। क्यों! क्योंकि उनके अन्दर उस लाचारी का एहसास रहता है। वे अपने पैरों पर खड़े होने के लिए तैयार नहीं है।
एक सच्चे साधक के मन में विचार उभरता है कि मैं हमेशा किसी शरण की – किसी मसीहे की खोज में हूँ। जब कोई मुझे रास्ता दिखाता है या मेरा ध्यान रखता है – तब मेरा मन शांत है। मगर अब मैं जान चुका हूँ कि जो मैं स्वयं के लिए नहीं कर सकता – कोई दूसरा मेरे लिए नहीं करेगा। इस चिंतन से मुझे एक नवीन दृष्टि मिली है – निर्भर नहीं रहने की।
इस तरह की विचारधारा से अंतर्मन में जिस भावना (या अनुप्रेक्षा) का जन्म होता है – वह है अशरण भावना यानी असुरक्षित स्थिति। उसके पार है शरण यानी सुरक्षा। इससे साधक अपनी अशरण अवस्था को पहचानने लगा है। एक-एक करके वह देखता है कि वह जिन वस्तुओं और व्यक्तियों पर निर्भर था – वे सभी अपने आप में लाचार हैं।
साधक को सोचना चाहिए कि मुझे अपनी चेतना को इन अनित्य निर्भरताओं से हटाकर जीवन के पावन प्रवाह के साथ जोड़ना है जो निरंतर है। उस चेतना के साथ जुड़कर मुझे अपना नित्य शरण – अपना आंतरिक संसार मिलेगा।
छिद्रमय हो नाव डगमग चल रही मझधार में।
दुर्भाग्य से जो पड़ गई दुर्दैव के अधिकार में ॥
तब शरण होगा कौन जब नाविक डुबा दे धार में ।
संयोग सब अशरण शरण कोई नहीं संसार में ॥१॥
एक तो छेदवाली नाव हो, मझधार में बह रही हो और वह भी दुर्भाग्य से दुर्दैव के अधिकार में पड़ गई हो; तथा जब नाविक ही उसे मँझधार में डुबाने को तैयार हो तो फिर उसे कौन बचा सकता है? अत: यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि सभी संयोग अशरण हैं, इस संसार में कोई भी शरण नहीं है
जिन्दगी इक पल कभी कोई बढ़ा नहीं पायगा ।
रस रसायन सुत सुभट कोई बचा नहीं पायगा ।
सत्यार्थ है बस बात यह कुछ भी कहो व्यवहार में ।
जीवन-मरण अशरण शरण कोई नहीं संसार में ॥२॥
यह जीवन जबतक है, तबतक ही है; इसका एक पल भी कोई बढ़ा नहीं सकता; जब मौत आ जायगी तो न तो रस-रसायन ही बचा पायेंगे और न सुत (पुत्र), न सुभट अथवा न सुभट-सुत । व्यवहार से कुछ भी कहो, पर सत्य बात तो यही है कि जीवन-मरण अशरण है, संसार में कोई भी शरण नहीं है।
निज आत्मा निश्चय-शरण व्यवहार से परमातमा ।
जो खोजता पर की शरण वह आतमा बहिरातमा ॥
ध्रुवधाम से जो विमुख वह पर्याय ही संसार है।
ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है ॥ ३॥
निश्चय से विचार करो तो एक अपना आत्मा ही शरण है, पर व्यवहार से पंचपरमेष्ठी को भी शरण कहा जाता है। इन्हें छोड़कर जो अन्य की शरण खोजता है, अन्य की शरण में जाता है; वह आत्मा बहिरात्मा है, मूढ़ है, मिथ्यादृष्टि है। ध्रुवधाम से विमुख पर्याय ही वस्तुत: संसार है और ध्रुवधाम की आराधना ही आराधना का सार है।
संयोग हैं अशरण सभी निज आतमा ध्रुवधाम है।
पर्याय व्ययधर्मा परन्तु द्रव्य शाश्वत धाम है ॥
इस सत्य को पहिचानना ही भावना का सार है।
ध्रुवधाम की आराधना आराधना का सार है ॥४॥
सभी संयोग अशरण हैं और ध्रुवधाम निज आत्मा ही परमशरण है। पर्याय का स्वभाव ही नाशवान है, किन्तु द्रव्य अविनाशी है। इस सत्य को पहिचानना ही अशरणभावना का सार है और ध्रुवधाम निज भगवान आत्मा की आराधना ही वास्तविक आराधना है, आराधना का सार है।
|| ASARAN BHAVANA||
No one provides protection
Unprotected are the souls of creatures
They are feeling fruitition of Karmas.
Any body doesn't help here.......
I'm praying to you.........2
IF YOU ARE INTERESTED IN LIST OF ALL THE SONGS TO DOWNLOAD JUST CLICK THE BELOW
No one provides protection
ASARAN BHAVANA अशरण भावना |
— Shrimad Rajchandra
Nobody can give us refuge at the time of death. The refuge of noble religion alone is real; to contemplate thus is Asharan bhavana.
They are feeling fruitition of Karmas.
Any body doesn't help here.......
I'm praying to you.........2
The Asharan Bhavana deals with the feeling of helplessness. It focuses on having no place to hide for safety, protection, and wellbeing, being lost in the world.Even though we have been successful at prolonging the life through advances in medical treatments, death is unavoidable. We have all seen our loved ones dying in pain and could not do anything to save them. The money, fame, achievements, friends, relatives – none of these could come to rescue and change the inevitable. The story of King Shrenik and Anathi Muni is a good example of this.
Bringing awareness of this reality, contemplation of this fact, is called Asharan Bhavana. The purpose is not to be afraid of death; but be ready for it! Upadhyay Shri Vinayvijayji guides us how to do this in His granth "Shant Sudharas". He tells us how to seek help in order to make death a celebration, how to get out this cycle of life and death, how to surrender.
We need not be afraid of death, we need to afraid of being born again! Being afraid of death is attachment whereas being afraid of another birth is a quality of an aspirant. The only way to really succeed in this life is to move our focus away from what is destructible – such as our body – and to find solace in what takes us towards what is eternal; and that is surrendering to Bhagwan’s teachings. Let us surrender our body to death which we cannot fight with, cannot run away from, cannot expect any mercy from. But let us surrender our mind to Bhagwan, Sadguru in order to win over death.
Death is nothing but an event, a goodbye; it is not destruction! Death can only take away ego and attachment; not the eternal soul.
Acharya Haribhadra, a renowned 7th century Jain master has provided valuable insight on how to apply these Bhavanas and Jain Sutras in his epic works Lalit Vistara and Yogdrsati Samuchay texts. Starting with recitation of Navkar mantra and understanding and chanting Chattari Mangalam sutra can provide incredible healing of mind, body, and soul.
In Namuthunam Sutra, Jain masters have provided incredible "Sharan" or surrender to Tirthankars and Siddha with these powerful Sutras: Saran Dayanam (Arihantas provide true refuge or protection of our soul); Magga Dayanam (Arihanta shows a path of liberation of soul), Abhaya Dayanam (when we realize our true self is ever lasting and we are not the body or mind, one becomes immortal), Chakshu Dayanam (Arihanta provides us divine vision), Bodhi Dayanam (Agam texts provide us powerful teachings for liberation of soul), and Tinnaam-Taryanam (Lord Mahavir and all Tirhtankars are liberated soul and have infinite compassion to liberate each soul in the universe)! If we just understand and appreciate how powerful these sutras are and if we can practice daily mediation on these sutras to reflect on, all our fear and false attachments will begin to dissolve gradually and we can experience peace, happiness, and blissful state. Then every moment of our life becomes a divine sanctuary of joyful journey to Nirvana Anandghanji’s stavan, is very powerful composition to practice how to experience divinity within by surrendering to Lord Aadinath. Let us review the last verse of this stavan:
Chitta Prasane re Pujan Fal Kahu re, Puja Akhandit Eha;
Kapat Rahit Thai Atam Arpana re, Anadghan Pad Rev
Rushabha Jineshavar Pritam Maharo re
Or na Chahu re Kant.
True meaning of this Asharan Bhavana is beautifully described by Anadghanji in the above verse: When a seeker surrenders unconditionally to Lord Aadinath in devotion with no other desire except to receive God’s grace and blessings, one experiences genuine peace and bliss. With continued practice of these Bhavanas or reflections, one can attain genuine peace, happiness, and spiritual enlightenment. The main condition is one has to be fully committed to study of the teachings and practice meditation daily on these Bhavans and integrate it with Bhaktiyog to illuminate the Self. Seekers of all faith have experienced such enlightenment including Chandanbala, Aanad Shravak, Acharya Mantungsuri who composed magnificent Bhakatamar stotra, Acharya Siddhsen Divakar who composed divine Kalyan Mandir Stotra, and Meerabai, Narsi Mehta, and Tulsidas who provided timeless devotional compositions to help millions of seekers attain spiritual enlightenment even at the present time!
When we surrender in full devotion to Lord Mahavir or Lord Aadinath, we become peaceful, calm, and fully secured and our "helpless" state of Asharan vanishes as we feel "empowered" - all the time in union with Lord Mahavir!. For simple exercise and practice of Asharan Bhavana, please recite these powerful sutras daily and several times when you are stuck in a traffic jam or stressed out at work! When you go to bed please recite these sutras religiously and miracles will happen to you! All you need is right faith and practice this meditation religiously.
Below is a stavan on Anitya Bhavana.
Contemplation that when death is near, nothing can save the living being, that he is helpless and no one can protect him from death. Therefore in such a helpless condition only adoption of right religion is true protection which can lead a soul to eternal peace, fearlessness and enlightenment. To adopt such line of thinking is called Asharan Bhavana.
Asharan bhavana is the absence of any refuge or shelter that can protect us from death and the uncertainty of life. The finality of death deals a body blow to our mythical sense of security and comfort that we envelop ourselves in. Each one of us has seen death at close quarters in family or among friends. Each one of us has gone through the desperate desire of wanting to take away some loved one’s pain or sorrow. But we have been able to only watch helplessly from the sidelines. Similarly, the family we love so dearly in this birth can do nothing for us when our time is up.
No power on this planet or universe can save us from the march of time. Yet, when the moment befalls someone, we feel sorry for that person and lament his fate. Such lament betrays ignorance, for everyone pays for their time on earth with eventual death. The only thing certain in life is death; the only shelter available to us is our Sadguru.
So, do we live a life of perpetual fear and lament, or do we hold our Sadguru’s hand and contemplate his path to immortality? The latter approach ensures that we do not invest excessively in the temporary facets of our existence – our family, home, wealth, work, friends, hobbies, etc. Once we clean these cobwebs of attachment from our mind, the truth shines crystal clear: this life is a blessing given to us to follow the path at the feet of a Sadguru in the spirit of total surrender. This surrender alone has the power to give us true refuge.
Along with our aagnas [daily regimen] and dhyaan [meditation], our contemplation should revolve around these points: “I am not this body; I am not this mind. My spouse, children are not mine; I am pure, eternal bliss without beginning or end. Nothing can hurt me, maim me or kill me. I have to know my true nature. I have to know myself.”
The dying lament of Alexander, or Sikander in Gujarati, has inspired many songs and bhajans. They speak of his heavy sense of remorse for having been consumed by his greed for power and his lust for material acquisitions. In spite of having conquered almost the entire world, none of his possessions or knowledgeable doctors could save him when death came knocking.
When Param Krupaludev Shrimad Rajchandraji was seven years old, he came to know that a person very close to him, one Amichandbhai, had suddenly died of snake bite. Shrimadji was perplexed. He came home and asked his grandfather about death. His grandfather explained: “It means the soul has gone out of the body. Now he won’t be able to move, sit, eat or speak. His body will now be burnt.” A young Shrimad was curious and followed the funeral procession. When the pyre was lit, Shrimad watched and remembered his past lives. Very early in life, he imbibed the lesson: Nothing survives except the soul.
To find the treasure trove of lasting happiness, let's delve deeper within.
‘Tu hi sagar hain tu hi kinara, dhoondhta hain tu kiska sahara?’
HIGHLIGHTED BUTTON TO DOWNLOAD FROM GOOGLE DRIVE
to download it
JAINAM JAYATI SHASHNAM
No comments:
Post a Comment