|| ANITYA BHAVANA : अनित्य भावना ||
ANITYA BHAVANA JAIN DHARM RELIGION
|| अनित्य भावना -नश्वरता का बोध||
Explanation of ANITYA BHAVANA in English and Hindi
ANITYA BHAVANA अनित्य भावना |
राजा राणा छत्रपति ,हाथिन के असवार,
मरना सबको एक दिन ,अपनी अपनी बार ||
जिस प्रकार विवेकी जीव झूठे भोजन को खाने में,चाहे कितना भी स्वादिष्ट हो..कभी ममत्व नहीं दिखता है..उसी प्रकार इस अनित्य भावना को भाने से जीव इस संसार के झूठे भोगों से,लाखो बार भोगे हुए भोगों से कभी ममत्व नहीं करता है..और न ही इनके वियोग में अरति करता और संयोंग में रति करता है
यह अनित्य भावना भाने का फल है.
Pravachan on Anitya Bhavna
सूर्यास्त के समय गुरु और शिष्य बाहर जाकर आसन ग्रहण करते हैं। प्रकृति में लीन हो जाते हैं। वर्षा के मौसम में कितने रंगें के बादल छा जाते हैं। कभी–कभी इंद्रधनुष भी नज़र आता है। गुरु शिष्य से कहते हैं, ‘इस नैसार्गिक सौंदर्य को देखो। इन रंगों की अनुभूति करो। हर बादल में एक आकार को दूँढ़ो। प्रकृति के साथ आत्मसात रहो। बाकी सब कुछ भूल जाओ।’ शिष्य सूर्यास्त के बादल के रंगों और आकारों से परिचित हो जाता है। वह अपनी आँखें मूँदकर उस चित्र को अपने मन की आँखों में समा लेता है। बार–बार अपनी आँखें खोलकर प्रकृति के बदलते हुए दृश्यों को देखता है और फिर से आँखें बंद करके ध्यानमग्न हो जाता है।
दो घंटों में अँधेरा छा जाता है। गुरु प्रश्न करते हैं, ‘वत्स, क्या नज़र आ रहा है?’ शिष्य कहता है, ‘मुझे कुछ नजर नहीं आ रहा। सब कुछ चला गया।’ अब गुरु पूछते हैं, ‘कहाँ चले गाए – वे आकार, रंग, बादल, वह सौंदर्य – कहाँ लुप्त हो गए?’ शिष्य चुप्पी में खो जाता है, विचारमग्न हो जाता है। उत्तर का आभास भी है। वह इंद्रधनुष, वह सौंदर्य लुप्त है। मगर फिर भी, गया नहीं है।
यही ध्यान का बिंदु है – सभी कुछ इस जगत में ही विद्यमान है। गुरु शिष्य से कहते हैं, ‘कुछ भी लुप्त नहीं हुआ है, सब कुछ यहीं है। मगर पृथ्वी की परिक्रमा के कारण तुम बदलाव को देखते हो। तुम्हारी भौतिक दुष्टि को ऐसा प्रतीत होता है मानो कुछ चला गया है।’ ‘अब अपनी अंतर्दृष्टि का प्रयोग करो। देखो, संपूर्ण ब्रहांड एक अटूट लय में घुम रहा है। वही सूर्य जिसे हम यहाँ से लुप्त मानते हैं, पृथ्वी के उस पार उदय हो रहा है। सूर्य तो वही है। स्वयं को पृथ्वी के धरातल से उठकर सूर्य की ऊँचाई तक ले चलो। अब तुम्हें सूर्य सदैव दृष्टिगोचर होगा। अपने भीतर के सूर्य से अभिज्ञ रहो, तुम्हारे अंदर अपरिवर्तनशील जीवन है।’
दो घंटों में अँधेरा छा जाता है। गुरु प्रश्न करते हैं, ‘वत्स, क्या नज़र आ रहा है?’ शिष्य कहता है, ‘मुझे कुछ नजर नहीं आ रहा। सब कुछ चला गया।’ अब गुरु पूछते हैं, ‘कहाँ चले गाए – वे आकार, रंग, बादल, वह सौंदर्य – कहाँ लुप्त हो गए?’ शिष्य चुप्पी में खो जाता है, विचारमग्न हो जाता है। उत्तर का आभास भी है। वह इंद्रधनुष, वह सौंदर्य लुप्त है। मगर फिर भी, गया नहीं है।
यही ध्यान का बिंदु है – सभी कुछ इस जगत में ही विद्यमान है। गुरु शिष्य से कहते हैं, ‘कुछ भी लुप्त नहीं हुआ है, सब कुछ यहीं है। मगर पृथ्वी की परिक्रमा के कारण तुम बदलाव को देखते हो। तुम्हारी भौतिक दुष्टि को ऐसा प्रतीत होता है मानो कुछ चला गया है।’ ‘अब अपनी अंतर्दृष्टि का प्रयोग करो। देखो, संपूर्ण ब्रहांड एक अटूट लय में घुम रहा है। वही सूर्य जिसे हम यहाँ से लुप्त मानते हैं, पृथ्वी के उस पार उदय हो रहा है। सूर्य तो वही है। स्वयं को पृथ्वी के धरातल से उठकर सूर्य की ऊँचाई तक ले चलो। अब तुम्हें सूर्य सदैव दृष्टिगोचर होगा। अपने भीतर के सूर्य से अभिज्ञ रहो, तुम्हारे अंदर अपरिवर्तनशील जीवन है।’
|| ANITYA BHAVANA||
All things are momentary in world,
Everybody doing the birth and death.
It is also nature of Universe......
I'm praying to you.........1
Under this reflection, one thinks that in this world every thing such as life, youth, wealth, and property are transient or subject to alteration. Nothing in the universe is permanent, even though the whole universe is permanent or constant. Spiritual values are therefore worth striving for as soul's ultimate freedom and stability. This will help to break all worldly attachments.
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ANITYA BHAVANA अनित्य भावना |
Everybody doing the birth and death.
It is also nature of Universe......
I'm praying to you.........1
Under this reflection, one thinks that in this world every thing such as life, youth, wealth, and property are transient or subject to alteration. Nothing in the universe is permanent, even though the whole universe is permanent or constant. Spiritual values are therefore worth striving for as soul's ultimate freedom and stability. This will help to break all worldly attachments.
Anitya meaning transient, ever changing. The opposite word is Nitya is permanent and changeless. This Bhavana makes us realize that our physical body, youth, beauty, health, wealth, sensual pleasures, fame-everything is temporary and one day could go away in an instant like a lightning in the sky. To convince ourselves with this bitter truth, we need to look no further than at our own past, rewind it and observe how our body and its capabilities have slowly deteriorated; how we have lost some of our friends and loved ones already. Even if we live 100 hundred years, one day, we will have to leave everything, and our body will be nothing but a pile of ash. Jainism says very clearly that the attachment to these transient things is only going to cause more pain upon their loss if we don’t wake up. This recognition is very important for us to live
a serene life.
For the mind it is frightening to know the ever-moving nature of everything we see. The mind wants to cling to whatever it has created - things, objects, ideas, relationships, and positions. That is why it is not willing to give up when the time comes. It says: It is going to remain with me forever. It is mine now. This is what causes attachment, thereby creating sadness upon separation.
That is the reason when the things or people depart from us, our mind is not ready to accept it. The mind refuses to recognize that nothing lasts forever. Either it changes or ends. Contemplation
of this temporary nature of things is Anitya Bhavana.
This bhavana is meant to lift us up when we are down in the dumps; when things go wrong. The purpose of such contemplation is for us to get a better understanding of reality and help us change our focus to what is eternal – the soul.
There are many incidents in or daily life that exhibit the
temporary nature of worldly objects.On the day, Lord Ram was
supposed to be coronated as a king, his life took a wild turn. He was asked by his father to go to a forest for 12 years! The excitement of coronation was replaced by gloom and doom in an instant.
Below is a stavan on Anitya Bhavana.
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JAINAM JAYATI SHASHNAM
an excellent jain site those who made it ,unnhe sadhovad.
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