AJIT SHANTI SUTRA
AJITSHANTI JAIN SUTRA LYRICS
अजित-शान्ति स्तवन STOTRA
AJITSHANTI STAVAN :AJIT SHANTI SUTRA LYRICS
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जय-गुरु संति-गुणकरे, दो वि जिण-वरे पणिवयामि......................................1 गाहा.
ववगय-मंगुल-भावे, ते हं विउल-तव-निम्मल-सहावे.
निरुवम-मह-प्पभावे, थोसामि सुदिट्ठ-सब्भावे.............................................. 2 गाहा.
सव्व-दुक्ख-प्पसंतीणं, सव्व-पाव-प्पसंतीणं.
सया अजिअ-संतीणं, नमो अजिअ-संतीणं....................................................3 सिलोगो.
अजिअ-जिण! सुह-प्पवत्तणं, तव पुरिसुत्तम! नाम-कित्तणं.
तह य धिइ-मइ-प्पवत्तणं, तव य जिणुत्तम! संति! कित्तणं............................ .4 मागहिआ
किरिआ-विहि-संचिअ-कम्म-किलेस-विमुक्खयरं,
अजिअं-निचिअं च गुणेहिं महामुणि-सिद्धिगयं.
अजिअस्स य संति-महा-मुणिणो वि अ संतिकरं,
स्ययं मम निव्वुइ-कारणयं च नमंसणयं........................................................ 5 आलिंगणयं.
पुरिसा! जइ दुक्ख-वारणं, जइ अ विमग्गह सुक्ख-कारणं.
अजिअं संतिं च भावओ, अभयकरे सरणं पवज्जहा....................................... 6 मागहिआ
अरइ-रइ-तिमिर-विरहिअ-मुवरय-जर-मरणं,
सुर-असुर-गरुल-भुयग-वइ-पयय-पणिवइअं.
अजिअ-महमवि अ सुनय-नय-निउण-मभयकरं,
रणमुव-सरिअ भुवि-दिविज-महिअं सयय-मुवणमे........................................7 संगययं.
तं च जिणुत्तम-मुत्तम-नित्तम-सत्त-धरं,
अज्जव-मद्दव-खंति-विमुत्ति-समाहि-निहिं.
संतिकरं पणमामि दमुत्तम-तित्थयरं,
संतिणी मम-संति-समाहि-वरं-दिसउ...........................................................8 सोवाणयं.
सावत्थि-पुव्व-पत्थिवं च वरहत्थि-
मत्थय-पसत्थ-वित्थिन्न-संथिअं;
थिर-सरिच्छ-वच्छं मय-गल-लीलायमाण-
वर-गंध-हत्थि-पत्थाण-पत्थिअं संथवारिहं.
हत्थि-हत्थ-बाहुं धंत-कणग-रुअग-निरुवहय-पिंजरं,
पवर-लक्खणो-वचिय-सोम-चारु-रूवं;
सुइ-सुह-मणाभिराम-परम-रमणिज्ज-
वर-देव-दुंदुहि-निनाय-महुर-यर-सुह-गिरं..................................................... 9 वेड्ढओ.
अजिअं जिआरिगणं, जिअ-सव्व-भयं भवोह-रिउं.
पणमामि अहं पयओ, पावं पसमेउ मे भयवं..................................................10 रासा-लुद्धओ
कुरु-जण-वय-हत्थिणा-उर-नरीसरो पढमं,
तओ महा-चक्क-वट्टि-भोए महप्पभावो;
जो बावत्तरि-पुर-वर-सहस्स-वर-नगर-निगम-जण-वय-वई,
बत्तीसा-राय-वर-सहस्साणुयाय-मग्गो.
चउ-दस-वर-रयण-नव-महा-निहि-
चउ-सट्ठि-सहस्स-पवर-जुवईण सुंदर-वई;
चुलसी-हय-गय-रह-सय-सहस्स-सामी,
छन्नवइ-गाम-कोडि-सामी, आसी जो भारहम्मि भयवं...................................11 वेड्ढओ.
तं संतिं संति-करं, संतिण्णं सव्व-भया.
संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउ मे................................................................ 12 रासा-नंदिअयं
इक्खाग! विदेह-नरीसर! नर-वसहा! मुणि-वसहा!,
नव-सारय-ससि-सकलाणण! विगय-तमा! विहुअ-रया!.
अजिउत्तम-तेअ-गुणेहिं महामुणि! अमिअ-बला! विउल-कुला!,
पणमामि ते भव-भय-मूरण! जग-सरणा! मम सरणं. ................................... 13 चित्त-लेहा.
देव-दाणविंद-चंद-सूर-वंद! हट्ठ-तुट्ठ! जिट्ठ! परम-लट्ठ-रूव!,
धंत-रुप्प-पट्ट-सेअ-सुद्ध-निद्ध-धवल-दंत-पंति!.
संति! सत्ति-कित्ति-मुत्ति-जुत्ति-गुत्ति-पवर! दित्त-तेअ-वंद-धेय!,
सव्व-लोअ-भाविअ-प्पभाव! णेअ! पइस मे समाहिं.......................................14 नारायओ.
विमल-ससि-कलाइरेअ-सोमं, वितिमिर-सूर-करा-इरेअ-तेअं.
तिअस-वइ-गणाइरेअ-रूवं, धरणि-धर-प्पव-राइरेअ-सारं............................ 15 कुसुमलया
सत्ते अ सया अजिअं, सारीरे अ बले अजिअं.
तव-संजमे अ अजिअं, एस थुणामि जिणं अजिअं.......................................... 16 भुअग-परिरिंगिअन्
सोम-गुणेहिं पावइ न तं नव-सरय-ससी,
तेअ-गुणेहिं पावइ न तं नव-सरय-रवी.
रूव-गुणेहिं पावइ न तं तिअस-गण-वई,
सार-गुणेहिं पावइ न तं धरणिधर-वई........................................................... 17 खिज्जिअयं
तित्थ-वर-पवत्तयं तम-रय-रहिअं,
धीर-जण थुअच्चिअं चुअ-कलि-कलुसं.
संति-सुह-प्पवत्तयं तिगरण-पयओ,
संतिम महा-मुणिं सरण-मुवणमे...................................................................18 ललिअयं.
विणओ-णय-सिर-रइ-अंजलि-रिसि-गण-संथुअं थिमिअं,
विबुहाहिव-धणवइ-नरवइ-थुअ-महि-अच्चिअं बहुसो.
अइरुग्गय-सरय-दिवायर-समहिअ-सप्पभं तवसा,
गयणंगण-वियरण-समुइअ-चारण-वंदिअं सिरसा........................................ 19 किसलय-माला.
असुर-गरुल-परिवंदिअं, किन्नरोरग-नमंसिअं.
देव-कोडि-सय-संथुअं, समण-संघ-परिवंदिअं............................................... 20 सुमुहं.
अभयं अणहं, अरयं अरुयं.
अजिअं अजिअं, पयओ पणमे....................................................................... 21 विज्जु-विलसिअं.
आगया वर-विमाण-दिव्व-कणग- रह-तुरय-पहकर-सएहिं हुलिअं.
ससंभमो-अरण-खुभिअ-लुलिअ-चल- कुंडलंगय-तिरीड-सोहंत-मउलि-माला...... 22 वेड्ढओ.
जं सुर-संघा सासुर-संघा वेर-विउत्ता भत्ति-सुजुत्ता,
आयर-भूसिअ-संभम-पिंडिअ-सुट्ठु-सुविम्हिअ-सव्व-बलोघा.
उत्तम-कंचण-रयण-परूविअ-भासुर-भूसण-भासुरिअंगा,
गाय-समोणय-भत्ति-वसागय-पंजलि-पेसिअ-सीस-पणामा.................................23 रयणमाला
वंदिऊण थोऊण तो जिणं, तिगुणमेव य पुणो पयाहिणं.
पणमिऊण य जिणं सुरासुरा, पमुइआ स-भवणाइं तो गया................................24 खित्तयम्
तं महामुणि-महंपि पंजली, राग-दोस-भय-मोह-वज्जिअं.
देव-दाणव-नरिंद-वंदिअं, संति-मुत्तमं महा-तवं नमे........................................... 25 खित्तयम्
अंबरंतर-विआरणिआहिं, ललिअ-हंस-वहु-गामिणिआहिं.
पीण-सोणि-थण-सालिणिआहिं, सकल-कमल-दल-लोअणिआहिं.....................26 दीवयम्
पीण-निरंतर-थण-भर-विणमिय-गाय-लयाहिं,
मणि-कंचण-पसिढिल-मेहल-सोहिअ-सोणि-तडाहिं.
वर-खिंखिणि-नेउर-सतिलय-वलय-विभूसणिआहिं,
रइ-कर-चउर-मणोहर-सुंदर-दंसणिआहिं.........................................................27 चित्तक्खरा.
देव-सुंदरीहिं पाय-वंदिआहिं वंदिआ य जस्स ते सुविक्कमा कमा,
अप्पणो निडालएहिं मंडणोड्डण-प्पगारएहिं केहिं केहिं वि.
अवंग-तिलय-पत्तलेह-नामएहिं चिल्लएहिं संग-यंगयाहिं,
भत्ति-सन्निविट्ठ-वंदणा-गयाहिं हुंति ते वंदिआ पुणो पुणो.................................. .28 नारायओ
तमहं जिणचंदं, अजिअं जिअ-मोहं.
धुअ-सव्व-किलेसं, पयओ पणमामि.................................................................29 नंदिअयं.
थुअ-वंदिअस्सा रिसि-गण-देव-गणेहिं,
तो देव-वहूहिं पयओ पणमिअस्सा;
जस्स-जगुत्तम सासणअस्सा, भत्ति-वसागय-पिंडिअयाहिं.
देव-वर-च्छरसा-बहुआहिं, सुर-वर-रइ-गुण-पंडिअयाहिं..................................30 भासुरयम्
वंस-सद्द-तंति-ताल-मेलिए तिउक्ख-राभिराम-सद्द-मीसए कए अ,
सुइ-समाणणे अ सुद्ध-सज्ज-गीय-पाय-जाल-घंटिआहिं;
वलय-मेहला-कलाव-नेउ-राभिराम-सद्द-मीसए कए अ,
देव-नट्टिआहिं हाव-भाव-विब्भम-प्पगारएहिं.
नच्चिऊण अंग-हारएहिं, वंदिआ य जस्स ते सु-विक्कमा कमा;
तयं तिलोय-सव्व-सत्त-संति-कारयं,
पसंत-सव्व-पाव-दोस-मेसहं नमामि संति-मुत्तमं जिणं................................... 31 नारायओ
छत्त-चामर-पडाग-जूअ-जव-मंडिआ,
झय-वर-मगर-तुरय-सिरिवच्छ-सुलंछणा.
दीव-समुद्द-मंदर-दिसागय-सोहिआ,
त्थअ-वसह-सीह-रह-चक्कवरंकिया.............................................................. 32 ललिअयं.
सहाव-लट्ठा सम-प्पइट्ठा, अदोस-दुट्ठा गुणेहिं जिट्ठा.
पसाय-सिट्ठा तवेण पुट्ठा, सिरीहिं इट्ठा रिसीहिं जुट्ठा....................................... 33वानवासिआ
ते तवेण धूअ-सव्व-पावया, सव्व-लोअ-हिअ-मूल-पावया.
संथुआ-अजिय-संति-पायया, हुंतु मे सिव-सुहाण दायया................................. 34 अपरांतिका
एवं तव-बल-विउलं, थुअं मए अजिअ-संति-जिण-जुअलं.
ववगय-कम्मरय-मलं, गइं गयं सासयं विउलं..................................................35 गाहा.
तं बहु-गुणप्पसायं, मुक्ख-सुहेण परमेण अविसायं.
नासेउ मे विसायं, कुणउ अ परिसा वि अप्पसायं............................................36 गाहा.
तं मोएउ अ नंदिं, पावेउ अ नंदिसेण-मभिनंदिं.
परिसा वि अ सुह-नंदिं, मम य दिसउ संजमे नंदिं...........................................37 गाहा.
पक्खिअ-चाउम्मासिअ-संवच्छरिए अवस्स भणिअव्वो.
सोअव्वो सव्वेहिं, उवसग्ग-निवारणो एसो. ....................................................38.
जो पढइ जो अ निसुणइ, उभओ-कालं पि अजिअ-संति-थयं;
न हु हुंति तस्स रोगा, पुव्वुप्पन्ना वि नासंति. ....................................................39.
जइ इच्छह परम-पयं, अहवा कित्तिं सुवित्थडं भुवणे.
ता तेलुक्कु-द्धरणे, जिण-वयणे आयरं कुणह. .................................................40.
Prabbu Stuti |
26-29
JAINAM JAYATI SHASHNAM
Thank you!!!
ReplyDeleteखूब खूब धन्यवाद
ReplyDeleteजय जिनशासन
This comment has been removed by the author.
DeleteVery very nice." Om arham"
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